Thursday, 12 December 2019

kya lgta hai ..

ना जाने  कौन  है  वो  और  मेरा  और  क्या  लगता  है
जिससे  मिलकर  मुझे  हर  एक  शक़्स  बुरा  लगता  है  .


दूर होकर  भी  जो  देता  है  मुझे  नूर  कभी  तू  मेरे  उस   चाँद  सा  लगता
जिसको  जाने   कबसे  सजाया  हो  मैंने पलकों पर तू  मुझे  उस  अरमान  सा  लगता  है


छोड़ना  चाहु  फ़िर  भी ना  जो  छूटे   उस  आदत   सा  लगता  है
जिससे  सोचते  ही  में  खुद  हॅसने   लागु   तू   मुझे मेरी  उस  शरारत  सा  लगता  है


नहीं  है  तू  मेरा  फ़िर  मुझे  क्यों  इतना  अपना  सा  लगता  है
खुली  आंखों  से  देखा  है  जिससे  हर  रोज  मैंने तू    मुझे  उस  सपना  सा  लगता  है


जो  हर  दिल  को जीत  जय  एक  नज़र  में  उस  अदा  सा  लगता  है
कबूल  नहीं   होती  फ़िर   भी  रोज  करती  हु  जिसे   तू  उस  दुआ  सा  लगता  है


चाहा  कर  जिसे पूरा  नहीं  कर पा रही हु  मेरे उस  किस्से सा लगता है
जिससे  ना  तोड़  पाओ  ना  ही जोड़  पाओ  में  तू उसी  रिश्ते  सा लगता है



लाखो  ख्वाइशे  जीने  के  बाद  जो  मिलता है   तू  उस  सुकून  सा  लगता  है
जिसकी  हदे  अब  बेहद  हो  चुकी  है  तू  मुझे  उस  ज़ुनून  सा  लगता  है



बहुत  हुई   उलझने   बहुत  हुई  कश्मकश   फ़िर  भी  नहीं  समझ  आ  रहा
चल  अब  तुही  बता  दे  आखिर  कौन  है  तू  और  मेरा  क्या  लगता  है ....



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