Monday, 20 January 2020

zarurat

चल  मान  लिया  हम  एक  दूजे  से  जुदा है
अपनी  ही  राहे अपनी  ही  अदा है
लिखनी  है  दोनों  को  ही  अपनी  दास्ताँ  पर  उसके  लिए 
एक  उम्र  की  जरूरत   तुझे  भी  मुझे  भी

माना तू  वो  सूरज  है  जो   रोशन  जहाँ  को  करता  है
और  में  वो  चाँद  जो  ठंडक  रात  में  बरसाती  हूँ
पर  बात  तो  ये  है  न  की
आस्मां  की   जरुरत  तुझे भी  और  मुझे  भी


माना  की  तू  उस  पेड़  सा  है  जो  छाया  दे  लाखों  को
और  में  उस  तुलसी  सी जो  आंगन   महकाती  हूँ
पर  जुड़े  है  दोनों  ज़मीन  से
मिटटी  की  जरूरत  तुझे  भी  मुझे  भी


माना  की  तू  बारिश  की  पहली  राहत  है
और  में  बर्फ  की  सफ़ेद  चादर  सी
बरसते  तो  दोनों  ही  है  पर
मौसम की जरुरत तुझे भी मुझे भी


माना  तू  एक  आग  है  जलने  जलने  को
में  पानी   की  तेज़  धरा  सी
हम  जिंदगी  भी  मौत  भी
सम्भलने  की  जरूरत  तुझे  भी  मुझे  भी


माना  तू  वो  गीत  है  जो    गुनगुना  कर  मन  खुश  होता  है
और   में  उस  ग़ज़ल  सी   जो  दिल  के   जज़्बात  बयान  कर  जाती है 
पर  ये  न  भूलो   जनाब 
लब्ज़ो  की  जरुरत  तुझे  मुझे  भी


दिमाक   है  तू  तो  दिल  हु  में
साज़  है  तू  तो  आवाज़  हु  में
खिलना  बिखरना  दोनों  को  है
फूल  है  तू  तो  खुसबू  हु  में


एक   दूजे  से  अलग  है   पर  बिना  एक  दूजे  के  एक  आधुरात   तुझे  भी  मुझे  भी
मान  भी   ले  अब  तेरी  जरुरत  मुझे  भी   और मेरी  जरूरत   तुझे  भी   ........










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