Tuesday, 19 November 2019

kya hoo tum

एक  कशिश  एक  चाहा  एक  एहसास  है  तू
ज़िन्दगी  नहीं  है  तू  मेरी  बस  मेरा  एक  ख्वाब  है  तू
बेपनाह  कदर  है  तेरी   मेरी  दिल  में  पर  गुरूर   न  कर
इस  दिल  में  उठने  वाले  बहुत  से  बेतुके  सवालो  का  बस  जवाब  है  तू


माना  एक  आदत  सा  बन  गया  है  तू  मेरी
पर  आदत  को  छुड़ाना  भी  मुझे  आता है
ये  अदावत  ये  अकड़  ये  घमंड  न  दे  मुझे
बिना  तेरे  जीना  भी  मुझे  आता  है


अगर  में   तुझे   अपनी  सोच  में  बसा  सकती  हूँ
 तुझे  बैठा  इन  पलकों  पर  आम  से  खास  बना  सकती  हूँ
तो  यु   मगरूर  हो  ज़लील  न  कर  मेरी  मोहबत  को
अगर बनाया था तुझ जैसे पत्थर को इंसान कभी मैने
तो  में  खुद  को  भी  इंसान  से  पत्थर  बना  सकती  हूँ .....

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