Tuesday, 26 November 2019

koun hu me

मेरा  खुद  से  मिलने  का  बहुत  मन  करता  है
बहुत  कुछ  सुना  है  जिसने  अपने  बारे  में   वो  हूं  मै
कोई  कहता  है  ये  हूं   में  कोई  कहता  है  वो  हूं  मै
कोई  मुझे  भी  बता  दो  आखिर  कौन  हूं  मै ...


किसी  का  झूठ किसी  का  सच  हूं  मै
किसी  का  जवाब  तो  किसी  का  सवाल  हूं  मै
अरे  क्यों  करते  हो  खर्च  इतनी  सोच  मुझ  पर
ऐसा  भी  कौन  सा  बवाल  हूं   मै


अरे  बस  भी  करो  इतनी  मुश्किल  नहीं 
बड़ी  ही  आसान  हूं  मै
अच्छा  बुरा  सही  गलत  कह  खुद  बना  दिया  इतना  खास  मुझे
वैसे  तो  बहुत  आम  इंसान हूं  मै


जाने  क्यों  सबके  ज़ेहन  में  चलने  वाला  किस्सा हूं   मै
जो  इतना  कहते  है न  मुझे  उन्ही  की  कहानी  का  एक  हिस्सा  हूं  मै



आगे  पीछे  की  गुजरी  बाते  बहुत  करते  है  सब
जिसको  कोई  नहीं   जान  सकता  वो  आने  वाला  कल  हूं  मै
आज  हु  तो  जी  भर  के  जी लो
जाकर  जो  फेर  न  लौटे  वो  पल  हूं  मै


चलती  हुई  साँसे  हूं  मै ,नहीं  सबके  दिल  में पलने  वाला   एहसास  हूं  मै
आईने  की  तरह साफ़  हूं   नहीं  किसी  को  भी  खाल्ने  वाला  राज़  हूं  मै
नहीं  है  सबकी  बस  की  बात  पड़ना  मुझे
जो  हर  कोई  समझ  न  पाया  वो  किताब  हूं   मै


कह  देते  है  जो  भी  है  मन  मै  ,
नहीं  सवालों  में  उलझा  हुआ भवर  हूं  मै
माना  नहीं चलती  दुनिया  के  कायदो  से अरे  जज  मत  करो
गलत  नहीं  हूं बस थोड़ी  अलग  हूं  मै
अच्छा  बुरा  सही   गलत  झूठ  सच  अब  इन  सब  बातों  से  आजाद  हूं   मै
गलतियां  होती  है  मुझसे  बहुत  सी   पर
जो  जान  कर  किसी   का  दिल  न  दुखाये  वो  बात  हूं   मै



Friday, 22 November 2019

badltey rishtey

बदलते  रिश्तों  के  हर  एक  मंजर  देखा  है
हरे  भरे  हुआ  करते  थे  जो  ज़मीन  कभी  अब  उन्हें  बंजर  देखा  है
गैरो  से  तो  क्या  ही  शिकायत  होती  है  यहाँ
हमने  तो  अपनों   के  हाथो  में  खंजर  देखा  है




पत्थर  हुए  कुछ  रिश्ते  इस  कदर  फिर  पिघल  न  सके
उलझे   इन  ख्वाइशे  के  भॅवर  में  कुछ  यु  की  फेर  सुलझ  न  सके
नशा  बी  उनकी   बातों  का  यूँ   चढ़ा  की  फिर  संभल  न  सके
कसूरवार  वो  न  थे  जो  बदल  गए  वक़्त  के  साथ
गुनाह  तो  हमारा  था  तो  जो  बदलती  दुनिया  में  हम  बदल  न  सके



चलो  मन  खता  मेरी  थी  मुझे  मंजूर  है
हु  एक  आइना  में  अपनी  इस  बात  पर  मुझे  बड़ा  गुरूर  है
हुई  हो  अब  जाकर  आज़ाद  सब  दिखावे  के  रिश्तों  से
अब  न  ही  कोई  जी  हुज़ूरी  है  न  ही  कोई  जी  हुज़ूर  है ......





Tuesday, 19 November 2019

kya hoo tum

एक  कशिश  एक  चाहा  एक  एहसास  है  तू
ज़िन्दगी  नहीं  है  तू  मेरी  बस  मेरा  एक  ख्वाब  है  तू
बेपनाह  कदर  है  तेरी   मेरी  दिल  में  पर  गुरूर   न  कर
इस  दिल  में  उठने  वाले  बहुत  से  बेतुके  सवालो  का  बस  जवाब  है  तू


माना  एक  आदत  सा  बन  गया  है  तू  मेरी
पर  आदत  को  छुड़ाना  भी  मुझे  आता है
ये  अदावत  ये  अकड़  ये  घमंड  न  दे  मुझे
बिना  तेरे  जीना  भी  मुझे  आता  है


अगर  में   तुझे   अपनी  सोच  में  बसा  सकती  हूँ
 तुझे  बैठा  इन  पलकों  पर  आम  से  खास  बना  सकती  हूँ
तो  यु   मगरूर  हो  ज़लील  न  कर  मेरी  मोहबत  को
अगर बनाया था तुझ जैसे पत्थर को इंसान कभी मैने
तो  में  खुद  को  भी  इंसान  से  पत्थर  बना  सकती  हूँ .....

Friday, 15 November 2019

Mujhe pasand hai

तारीफ  नहीं  करती   मै उसकी ,पर
उसकी  कुछ  बाते   मुझे  पसंद  है
उससे  बात  नहीं  करनी  मुझे  पर ,
उसकी  बातें  करना  मुझे  पसंद  है 



अकड़  है  अदा  है  गुरूर  है ,पर
उसकी  ये  मगरूरी  मुझे  पसंद  है
बादशाह  है  वो  अपने  मन  का ,
 उसकी  करना  न  जी  हुज़ूरी  मुझे  पसंद  है



नहीं  है  हक़ीक़त  वो  मेरी  ,
फिर  भी  उसे  सोचना  मुझे  पसंद  है
मालूम  है  चाँद  जैसा  है  वो ,अरे  नहीं  चाहिए  ,
उसे  दूर  से  देखना  मुझे  पसंद  है


बिखर  जाते  मेरे  सपने  उसकी  बेफिक्री  के  आगे
फिर  से  उन्हें हर बार  पिरोना  मुझे  पसंद  है
गलत  नहीं  है  वो   थोड़ा  जुदा  है  सबसे
उसका  यूँ  अलग सा  होना  मुझे  पसंद  है



मालूम  है  नहीं  है  वक़्त  उसके  पास  मेरे  लिए
फिर  भी  उसकी  राह  देखना  मुझे  पसंद  है
मत  देख  मुड़  कर  मुझे  कोई  गम  नहीं
तुझे  यूँ  छुप  छूप   कर  देखना  मुझे  पसंद  है


तेरा  ऑनलाइन आना स्टेटस ढालना और  फिर  चले  जाना  आम  है
फिर   भी तेरी    प्रोफाइल  पर  बार  बार  विजिट  करना  मुझे  पसंद  है
अरे  करले  जी  भर  के  इगनोर  न  कर  रिप्लाई  परवाह  किसे  है
हर  रोज  तुझे  एक  मैसेज  छोड़ना  मुझे  पसंद  है ..


जो  भी  करते  हो  न  तुम ,तुमसे  तुम्हारी  शिकायत  करना  मुझे  पसंद  है
नहीं  चाहिए  कुछ  भी  अब  बस  यूही  इबादत  करना  मुझे  पसंद  है
अनजान  रहो  ,बेफिक्र  रहो ,बेअसर  रहो  क्या  फर्क  पड़ता  है  इससे
तुमसे  तो  यूँ  खामोश  मोहबत  करना  मुझे  पसंद  है ......

Sunday, 10 November 2019

tu nahi me nahi

दूर  तू   है  अगर  तो  पास  मै  भी  नहीं
आइना  है  अगर  तू  तो राज़  मै भी  नहीं


कुछ   बाते  थी  कुछ  हालात थे  अलग  से
गलत  नहीं   था  तू  ,और  सही  मै  भी  नहीं


रस्ते  ही  अलग  थे  अपने  और  कुछ  नहीं  बस
अगर रूठा  नहीं  था  तू  ,तो टूटी  मै  भी  नहीं


एक  अजाब  सी  खामोशी थी  दरमियाँ  अपने
चुप  हो गया  था  तू  ,और  बोली  मै  भी नहीं


गलतफहमियाँ बढ़ गई  थी  अपने  बीच  पर  मालूम  था
पूरा  झूठ  नहीं  था  तू ,और  पूरा  सच  मै  भी  नहीं


कशिश   और चाहतों  की  इस  दुनिया  में  सिर्फ
एक  सपना  नहीं  था  तू ,और  पूरी  हक़ीक़त  मै भी  नहीं


गलतिया  होती  है  सबसे  ,पर  तू  मानता तो  ..जो  गलती  न  करे
वो  भगवान  तू  भी  नहीं ,और  जो  माफ़  न  कर सके  वो  इंसान  मै  भी  नहीं 

Saturday, 9 November 2019

Insaniyaat

मंदिर  की  बात  करो  या  मस्जिद की  मूराद  करो
राम  रहीम  जीजास अल्लाह  एक  ही  है  बस  दिल  से  फ़रियाद  करो
बिल्डिंग  इम्मारत  ,घर  महल  पर  क्या  लड़ते  हो  सब
इंसानियत  ही  एकलौता  धर्म  है  बस  दिल  से  इतना  याद  करो



राम  नहीं  कहते  मंदिर  बनाओ
न  अल्लाह  को  ख्वाइश  है   मस्जिद  की
ये  सब  तो  बेकार  की  बाते है
बस  हिन्दू  मुस्लिम  की  ज़िद   की


रब ने  तो  एक  खूबसूरत  इंसानो  की  दुनिया  को  बनाया  था
हम  खुद  अपनी  अपनी  ज़ात  बाँट  गाय
भूल  कर  इस  बात को   सब  उसके  बच्चे  है   हम
तू  हिन्दू  तू  मुस्लिम  कह  कर  एक  दूजे  को  काट  गाय


क्यों लड़ते  हो  ज़मीन  के  टुकड़े  के  लिए  ,ये  पूरा  उसका  ही  ज़हान है
कुछ  रोज़  की  ज़िन्दगी  है  जी लो   प्यार  और  इंसानियत  से
मरकर  जिससे  मिले  ,पास जिसके    तुझे  जाना है
 वही तेरा  अल्लाह  ,वही तेरा  भगवान्  है .....



Wednesday, 6 November 2019

SAFAR

इस  सफर  का  हिस्सा  जाया  कर  चुके  है
हम  तुम्हारी  तरफ  हर  कदम  भर  चुके  है



हमें  अपनी  कहानी  क्या  बतलाते  हो  तुम
हम  तुम्हारे  हर  किस्से  से  गुजर  चुके  है



हमसे  मिलने  की  खुद  को  उम्मीद  देने  वाले
तुम्हे  पता  ही  नहीं  तुम्हारे  लिए  हम  कबका  मर  चुके  है



हमे  अब  न  कहो  की  तुम  समेट लोगे
अब  हम  बड़ी  तसल्ली  से  बिखर  चुके  है


हमे  अब  अपना  साहिल  कही  नहीं  दिकता
हम  तो  इस  इश्क़  ऐ कश्ती  से  कबका  उतर  चुके  है



ढूँढ़लो  उन  गलियों  में  जाकर  अब  कितना  भी  हमे ,नहीं  मिलेंगे
बदलती  दुनिया  के  इस  दौर  में  अब  हम  भी  पूरी  तरह   से  बदल   चुके  है .....