सोचा था कभी
ना करेंगे मोहबत
पर ना जाने
कब ये हिमाकत कर बैठे
।
खेलत खेलते खिलौनों से कब इश्क़ जैसी शरारत कर बैठे
अरे किया तो किया बस इश्क़
भी किया होता तो
कोई बात नहीं
होती
पर हम तो
जैसे इबादत कर बैठे
अरे दुनिया ,जहाँ ,समाज तो छोड़ो
हम तो खुद से
ही बगावत कर बैठे
पर जो किया अच्छा किया ,एक नया रंग जवानी को दिया
अरे जिसने नहीं कभी इश्क़ की भूल की
उसने जिया बी तो क्या ख़ाक जिया
इश्क़ करके जिंदगी बर्बाद ही सही
पर सुकून तो ये है जिंदगी में कुछ
तो है जो बस दिल से किया
इसमें भी एक अलग सा जूनून है
जो ज़माने की नज़रों में गुनाह है
झूठ नहीं की इसमें दर्द है तन्हाई है
रुस्वाई है
पर इसी कश्मकश में ही तो जीने का मज़ा है
सजा और मज़ा ना हो तो
इश्क़ की कहानी नहीं होती
जो मोहबत का दरिया ना छुए वो जवानी नहीं
होती
अरे इश्क़ तो खुद में वो जज़्बा है जो जन्नत को भी ठुकरा
दे
वरना यूही सुन्दर राधा सावले श्याम की दीवानी नहीं होती
ये तो वो तूफ़ान है जो ख्वाबो को नया मोड़
देता है
अपने पर आ
जाय तो दरिया का रुख भी मोड़ देता है
इस जिंदगी को देखने का नया नूर देता है
अरे जो मोहब्त को गलती समझ कर छोड़ते है
वो कही ना कही जीना छोड़ देते
है
हर चाहत ,हर हसरत हर ख़्वाब पूरा कहा
होता है
बस बिना मजिल चलते जाना ही इश्क़ का मयना होता है
जो पूरा होके किताबों में बस जाते वो राजा रानी का किस्सा होता है बस
पूरा नहीं फिर
भी आसमानो पर है जो अधूरा रह जय वही तो इश्क़ होता है
।